ना जानियो मुझको मेनका, ओ ब्रह्मचारी
कोई मतलब नहीं मुझे जो भंग करू तेरी तपस्या सारी
ना ही मानियो कि हूं मै सीता बेचारी
शक करेगा तो भी ना जाऊंगी अग्नि में मारी
ना ही हूं मै प्रचंड रूप वाली काली
कुपित है तू, भला बनू क्यों तेरा खून पीने वाली
दुर्गा भी नहीं हूं, संसार का दुख हरनेवाली
मै नहीं हूं वो जिसने ये सृष्टि संहारी
लड़ना भी नहीं आता जो समझे मुझे झांसी की रानी
ना खून बहाया मैंने, ना मै खूब लड़ी मर्दानी
अबला मान या मान मुझे सबला
तेरे कहने से कुछ भी तो नहीं बदला
तुझे कौनसा कहा मैंने राम या रावन
जो इस तरह झांके है तू मेरा मन
योगी ना जान खुदको तू बेईमान
ज़रा मुखौटा तो हटा, देखे ये जहान
कौन बना फ़िर रहा है मेरा रक्षक
क्या कौरव, क्या पांडव, निकले तो सब भक्षक ।
– अंशिका मल्होत्रा